Wednesday, July 29, 2009

मेरी कविता --"है गरीबी "
कहा खो गया मेरा बच्चपन ,
धुल से सने चेहरा दिखाये यह दरपण .
कभी ट्रेन में तो कभी सडको पे खडा में ,
दो पैसो के लिये तुमसे लड़ा भी में ,
कभी परियो के मीठे सपनो की ,
चादरे ओढ़ कर सोया में .
कभी तुम्हारी गालिया सुनकर ,
भूखे पेट जागा में .
जब आँखों में अंशु आये ,
मोती समाज छुपा लिया इन्हे ,
जब बासी रोटिया पाए ,
5 star का खाना समाज कर खा लिया इन्हे .
कल क्या पता , सपने वाली पारी का जादू चल जाये ,
टूट - ते तारे मेरी दुआ सुन्न जाये ,
और ,मेरा मुस्कराता बच्चपन फिर लौट आये .


posted by "Subhash Khaware --subhash_khaware@rediffmail.com"